परिणामस्वरूप कीमत-लागत अंतर अपने न्यूनतम स्तर पर होता है।
3.
बाजार में किसी का रूतबा इतना बड़ा नहीं है कि वह कीमत-लागत अंतर में अतिरिक्त बढ़ोतरी कर सके।
4.
उधार लेने और उधार देने व प्रबंधन शुल्क के बीच की कीमत-लागत अंतर राशि को नाबार्ड आदिवासी विकास निधि (टीडीएफ) हेतु आबंटित कर देता है.
5.
बाजार पर कब्जा होने के साथ ही वे धीरे-धीरे कीमत-लागत अंतर में बढ़ोतरी करना शुरू करते हैं, ताकि अपना मुनाफा अधिक से अधिक कर सकें।
6.
विदेशी मल्टी ब्रांड रिटेल स्टोर्स में कीमत-लागत अंतर की यदि मौजूदा भारतीय खुदरा / थोक बाजारों से तुलना की जाए तो यह 2 गुना से शुरू होकर 9 गुना तक पहुंच सकती है।